एक नदी गुजरती है ,
पथरीले पहाड़ों से ,कंटीली राहों से ....
रौशनी का सैलाब लेकर रोज चलता है सूरज
कितना ज़ुलसता और सुलगता है दिन भर !!!!
न दिखती ये हवाएँ भी टकराती है किस किस जगहोंसे !!
कभी आग से गुजरती है कभी बर्फीली वादियों से ....!!!
एक नज़्म भी गुजरती है कलम से कागज़ के सफर में ,
कितने कितने मक़ामसे उस गली से
जिसका नाम कभी ख़ुशी के गली है
या है फिर दर्द का शहर !!!!....
बस्ती से विरानो से हर मोड़ से पहचान है उसकी ,
बस खुद से पहचानना भूल जाती है कभी कभी ये जिंदगी !!!
पथरीले पहाड़ों से ,कंटीली राहों से ....
रौशनी का सैलाब लेकर रोज चलता है सूरज
कितना ज़ुलसता और सुलगता है दिन भर !!!!
न दिखती ये हवाएँ भी टकराती है किस किस जगहोंसे !!
कभी आग से गुजरती है कभी बर्फीली वादियों से ....!!!
एक नज़्म भी गुजरती है कलम से कागज़ के सफर में ,
कितने कितने मक़ामसे उस गली से
जिसका नाम कभी ख़ुशी के गली है
या है फिर दर्द का शहर !!!!....
बस्ती से विरानो से हर मोड़ से पहचान है उसकी ,
बस खुद से पहचानना भूल जाती है कभी कभी ये जिंदगी !!!
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