यादों के तालमें यूँ ही किसीके दिदारने एक कंकर फेंका ,
कितनी ही तरंगे उठ रही थी न जाने कब तक ,
हर लहर पर हर लम्हा फिर से सतह पर आ रहा था
जैसे फिर बीती बातें जवां हो रही थी नए लिबासमें …
फिर वो अलमारी खोलनी चाही फिर से एक बार ,
ताले पर भी जंग लगी थी चाबी तो गम गयी कबसे ,
एक पथ्थर उठाकर ताला तोड़ दिया हमने ,
अंदर से यादों की बारात फर्श पर बिखर गयी ……
वो कंचा ,वो गुल्ली ,वो तुम्हारी गुडियाकी चुनर ,
वो तुम्हारी कहानी की फाड़ी थी जो किताब ,
वो तुम्हारा छुपाया हुआ कानका बूंदा नयावाला ,
सब अभी भी जवान है , जैसे कल की ही बात हो ……
एक बार फिर से मिलने का संदेसा मिला है ,
पुरानी स्कूलमे वही बेंच पर बैठकर फिर से ,
कागजकी कश्ती बनाएंगे ,और एक नाकाम
कोशिश करेंगे इस तूफान के लिए मुर्गा बनकर …
कमलेश जा चूका था बिदेस ,गौरी अब दुनियामे नहीं रही ,
निम्मो तुम आई नज़र का चश्मा पहनकर ,
बालों की सुफ़ेदी को खिजाबों में लपेटे , और मैं ????
वक्त सबके चेहरों की सिलवटोंसे दास्तानें कुरेद रहा था ……
कितनी ही तरंगे उठ रही थी न जाने कब तक ,
हर लहर पर हर लम्हा फिर से सतह पर आ रहा था
जैसे फिर बीती बातें जवां हो रही थी नए लिबासमें …
फिर वो अलमारी खोलनी चाही फिर से एक बार ,
ताले पर भी जंग लगी थी चाबी तो गम गयी कबसे ,
एक पथ्थर उठाकर ताला तोड़ दिया हमने ,
अंदर से यादों की बारात फर्श पर बिखर गयी ……
वो कंचा ,वो गुल्ली ,वो तुम्हारी गुडियाकी चुनर ,
वो तुम्हारी कहानी की फाड़ी थी जो किताब ,
वो तुम्हारा छुपाया हुआ कानका बूंदा नयावाला ,
सब अभी भी जवान है , जैसे कल की ही बात हो ……
एक बार फिर से मिलने का संदेसा मिला है ,
पुरानी स्कूलमे वही बेंच पर बैठकर फिर से ,
कागजकी कश्ती बनाएंगे ,और एक नाकाम
कोशिश करेंगे इस तूफान के लिए मुर्गा बनकर …
कमलेश जा चूका था बिदेस ,गौरी अब दुनियामे नहीं रही ,
निम्मो तुम आई नज़र का चश्मा पहनकर ,
बालों की सुफ़ेदी को खिजाबों में लपेटे , और मैं ????
वक्त सबके चेहरों की सिलवटोंसे दास्तानें कुरेद रहा था ……
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, युवाओं की धार को मिले विचारों की सान - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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