कहीं से गुजरती थी एक डगर ,
जो तेरे दर से होकर जाती थी ,
ये किस्मतकी लकीरें जैसी थी ,
जो मंज़िल सामने आते ही पलट जाती थी ....
तेरा ख़याल न छोड़ा हमने कभी ,
तेरा दीदार न किया हमने कभी ,
तेरे से सहर होती रही इस शहरमें ,
पर तेरा जिक्र न किया हमने कभी …
न कसम थी न किया कोई वादा ,
बस ये ख्यालोंमें पका था इश्क़ कभी ,
तेरे दिलको न टटोला था कभी ,
बिना कुछ शर्त कोई वादा खुद से किया कभी ....
मेरा इश्क़ मुकम्मिल है ,
गर दुनिया न करे कुबूल इसे ,
फिर भी हमें उस पर रश्क है ,
रब का दीदार न किया कभी हमने
फिर भी दुआओमें तू कुबूल है ....
जो तेरे दर से होकर जाती थी ,
ये किस्मतकी लकीरें जैसी थी ,
जो मंज़िल सामने आते ही पलट जाती थी ....
तेरा ख़याल न छोड़ा हमने कभी ,
तेरा दीदार न किया हमने कभी ,
तेरे से सहर होती रही इस शहरमें ,
पर तेरा जिक्र न किया हमने कभी …
न कसम थी न किया कोई वादा ,
बस ये ख्यालोंमें पका था इश्क़ कभी ,
तेरे दिलको न टटोला था कभी ,
बिना कुछ शर्त कोई वादा खुद से किया कभी ....
मेरा इश्क़ मुकम्मिल है ,
गर दुनिया न करे कुबूल इसे ,
फिर भी हमें उस पर रश्क है ,
रब का दीदार न किया कभी हमने
फिर भी दुआओमें तू कुबूल है ....
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