19 जुलाई 2013

सरकता हुआ वक्त

रेत घडीसे सरकता हुआ वक्त ,
समेटनी की कोशिश करते ,
कितने लम्हे हथेली पर चिपक गए !!!
गीली सिली थी जो यादों से ....
खरोंचते हुए हथेलीको ,
नयी लकीरें बनाने की कोशिश की ,
वो तक़दीर की लकीरें ही मिटा दूँ ,
जिसमे जुदाई लिखी थी ...
अब ये खरोंचों से फिर से खिंची है ,
एक नयी लकीर जो
तुझे मेरी तक़दीरमें लौटने का पयाम लायी है ....
न तक़दीर थी ,न तदबीर थी ,
बस एक खयालसा आ कर चला जाता है
ऐसे ही मेरे जहनमें गुपचुप गुपचुप ...
जब रातमें वो सितारें देखती हूँ एकटक ...!!!!

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