टाट के परदे के पार खड़ी है मुस्कुराती हुई तक़दीर ,
ये पैबंद ढंके है तेरी ग़ुरबत पर चिलमन बनकर .....
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ये सूरज का प्यार जब सिसकता है उसकी महबूबा के लिए ,
राख बिखर जाती है सिसकियाँ जिसे हम धुप के नामसे जानते है ..
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चुपचाप खड़ी रहती है खलिश गुबार लिए दिल के कोनेमे ,
क्या करे बेजुबान हो जाती है जब उसका दीदार होता है ...
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चाँद और तारे क्या बतियाते होंगे जागते है आसमानमें जब ,
वो पहरा देते है आसमानका जो सोया है अभी अभी ,
कितने दाग बनाये है धुपने आसमान के दामन पर गिन गिनकर ,
जो नासूर बन गए है रातोमे चांदका मरहम लगाकर बस .....
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नजरोके तीर घायल कर देते है और बेजुबाँ होती है जुबाँ ,
घायल वो दिल जाकर किस को शिकवा करे इंसाफ के लिए ????
ये पैबंद ढंके है तेरी ग़ुरबत पर चिलमन बनकर .....
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ये सूरज का प्यार जब सिसकता है उसकी महबूबा के लिए ,
राख बिखर जाती है सिसकियाँ जिसे हम धुप के नामसे जानते है ..
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चुपचाप खड़ी रहती है खलिश गुबार लिए दिल के कोनेमे ,
क्या करे बेजुबान हो जाती है जब उसका दीदार होता है ...
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चाँद और तारे क्या बतियाते होंगे जागते है आसमानमें जब ,
वो पहरा देते है आसमानका जो सोया है अभी अभी ,
कितने दाग बनाये है धुपने आसमान के दामन पर गिन गिनकर ,
जो नासूर बन गए है रातोमे चांदका मरहम लगाकर बस .....
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नजरोके तीर घायल कर देते है और बेजुबाँ होती है जुबाँ ,
घायल वो दिल जाकर किस को शिकवा करे इंसाफ के लिए ????
बहुत हीं सुन्दर प्रस्तुति,आभार.
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