बंदिशें बनती है धूपमे भी कभी ,
सरगम बनकर बिछ जाता है धूप का हर टुकड़ा ,
उसके सूरसे नर्तन करते हुए किरणों के बाण
आग चुभाते है नश्तरों के निशान छोड़ते हुए .....
सबा चुप ,हवा चुप ,
जमीं चुप ,आसमां चुप ,
चाँद चुप ,सूरज चुप ,
चुप चुप से है तारे सारे ....
तब वो टीसके कसक
एक कराह बनकर निकल गयी ,
धूपके टुकड़े की लालटेन सी रौशनीमें देखा ,
वो तो टुकड़ा था दिल का .......
सरगम बनकर बिछ जाता है धूप का हर टुकड़ा ,
उसके सूरसे नर्तन करते हुए किरणों के बाण
आग चुभाते है नश्तरों के निशान छोड़ते हुए .....
सबा चुप ,हवा चुप ,
जमीं चुप ,आसमां चुप ,
चाँद चुप ,सूरज चुप ,
चुप चुप से है तारे सारे ....
तब वो टीसके कसक
एक कराह बनकर निकल गयी ,
धूपके टुकड़े की लालटेन सी रौशनीमें देखा ,
वो तो टुकड़ा था दिल का .......
vandana ji , aap hamesha meri hausala afjaai karte hai is ke liye ham aap sab log ke bahut bahut shukr gujar hai ...aap ne haal me hi bahut se samman paye hai un sabhi ke liye aapko bahut bahut badhaiyaan ....!!!
जवाब देंहटाएंबंदिशें बनती है धूपमे भी कभी , bahut umda abhivyakti
जवाब देंहटाएंaapka bahut bahut aabhar ...
हटाएंबहुत सुन्दर लिखा है प्रीती जी....
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं.
अनु
aapka bahut bahut shukriya anuji .....
हटाएंबढ़िया
जवाब देंहटाएंaabhar ...
हटाएंshukriyaji ....aapki tippaniyan mujhe hausala deti rahegi ...
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