वक्तका आकार देखा कल ,
बिलकुल चाँद की तरह ,
गोल एक दम गोल ...माँ की रोटी की तरह ,
पर आकाशमे परदे के पीछे खेले लुकाछिपी ....
कभी समीज नजर आये कभी उसे बाल ,
कभी पैर की आहट या फिर पूरा दिख जाए .....
कभी लगता है जहाँसे सफ़र शुरू हुआ था
फिर वही मुकाम पर पहुँच गए हम ...
कभी लगता है मंजिल की तलाश है ,
और ये रस्ते ही ख़त्म नहीं होते ....
कभी हमारे पीछे पीछे चलता है ,
और कोई घने पेड़के तने के पीछे छुपता ,
कभी आगे दौड़ता हुआ हमसे दूर निकलता हुआ ....
बस एक तुम ही हो मेरी उंगली थाम कर चलते रहे ,
बस चलते रहे ताउम्र ......
न सफ़र थका न तन्हाई ख़त्म हुई ,
खुशबु वो तुम्हारे साथ होने की और ...बस
ये और के जवाब की तलाश है ......
बहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंकिसान और सियासत
dhanyavad ...
हटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंdhanyvad ...
हटाएंmeri kruti shamil karne ke liye shukriyaji ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लेखन | पढ़कर आनंद आया | आशा है आप अपने लेखन से ऐसे ही हमे कृतार्थ करते रहेंगे | आभार
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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