2 अप्रैल 2013

वक्तका आकार

वक्तका आकार  देखा कल ,
बिलकुल चाँद की तरह ,
गोल एक दम गोल ...माँ की रोटी की तरह ,
पर आकाशमे परदे के पीछे खेले लुकाछिपी ....
कभी समीज नजर आये कभी उसे बाल ,
कभी पैर की आहट या फिर पूरा दिख जाए .....
कभी लगता है जहाँसे सफ़र शुरू हुआ था 
फिर वही मुकाम पर पहुँच गए हम ...
कभी लगता है मंजिल की तलाश है ,
और ये रस्ते ही ख़त्म नहीं होते ....
कभी हमारे पीछे पीछे चलता है ,
और कोई घने पेड़के तने के पीछे छुपता ,
कभी आगे दौड़ता हुआ हमसे दूर निकलता हुआ ....
बस एक तुम ही हो मेरी उंगली थाम कर चलते रहे ,
बस चलते रहे ताउम्र ......
न सफ़र थका न तन्हाई ख़त्म हुई ,
खुशबु वो तुम्हारे साथ होने की और ...बस 
ये और के जवाब की तलाश है ......

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर लेखन | पढ़कर आनंद आया | आशा है आप अपने लेखन से ऐसे ही हमे कृतार्थ करते रहेंगे | आभार


    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

    जवाब देंहटाएं

विशिष्ट पोस्ट

मैं यशोमी हूँ बस यशोमी ...!!!!!

आज एक ऐसी कहानी प्रस्तुत करने जा रही हूँ जो लिखना मेरे लिए अपने आपको ही चेलेंज बन गया था । चाह कर के भी मैं एक रोमांटिक कहानी लिख नहीं पायी ...