31 जनवरी 2013

हम गुलाबी हो जाते है

आज कल पाँव जमीं पर नहीं पड़ते मेरे .....
क्योंकि ठण्ड बहुत है तो हर वक्त जुर्राबें पहने रहती हूँ .....
स्लीपर साथ होती है और जमीं से हम
महरूम महरूमसे रहते है ...
मेरी नयी नयी सी कुर्तीकी तारीफ भी नहीं मिलती ,
बेचारी कैसे हाल ए  दिल सुनाये ???
पुरे वक्त बेचारी स्वेटरके किले में कैद रहती है ,
और ये स्वेटर सुरक्षामें तैनात है की हम ठिठुर न जाए !!!!!
छोटे छोटे दिनमें मसरूफियत मेहमान रहती है ,
दिनकी लम्बाई कट छटके आती है इन दिनों ,
रात पूरी कम्बलोंमे लिपटकर देर सुबह तक सोती है .....
गर्म गर्म चायके कप से उठती हुई भाप ,
गरमाहट के पैगाम नाकको पहुंचाती है ,
और मेथीकी भाजीसे बन रहे पकोड़े
बनते है पडोसी के रसोईघर में ,
बरसात हमारे मुंहमें पानी की शुरू हो जाती है .....
शादीयों के इस मौसममें हम भी कभी
गहने कपडों में लदकर रईसाना मिजाज़ पाते है ,
शादीके कवर बनाते बनाते तनख्वाह आधी देकर आते है .....
भांगड़ा पाकर बारातोंमें फिर दावतोंमें जाकर
फरियाद करते है बढ़ोतरी आज कल खुदके वजनमे भी है   .....
चलो जाड़े के मद मस्त मौसममें हम गुलाबी हो जाते है ,
कवितायेँ भले कम लिखे थोड़ी ,
पर मौसमको जिन्दगीमे भर कर ले आते है !!!!!

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