22 सितंबर 2012

यादों के शहर में

पता नहीं ये क्यों सोच रही हूँ की आजकल वक्त बहुत मिल रहा है ...हाँ पूरी दुनिया वक्तकी कमी की शिकायत कर रही है तब मेरे पास ढेर सारा वक्त है ....हाँ सब काम करने के बाद का बहुत सारा वक्त जहाँ पर मुझे कुछ करने का वक्त नहीं ...बस ये वक्तमें एक खास जगह है वहां अनायास ही पहुँच जाती हूँ ..यादों के शहर ...
ये शहर ऐसा है की जहाँ की हर गली नुक्कड़ ,स्टेशन ,हवाई अड्डा सब कुछ मेरा परिचित है ....जहाँ पर हर वक्त एक नया लम्हा जुड़ता रहता है पर उसकी सरहदोंमें समाता जाता है ...पर उसका कोई कद नहीं बदलता है ..बस उतना है ..नए चेहरे नया वक्त रोज जुड़ता है पर वहां आल्बममें फिर भी कोरे पन्ने है ...
शायद मैंने जिंदगीमें कुछ और नहीं सिखा हो पर एक चीज बड़ी अच्छी सीखी होगी ..टाइम मेनेजमेंट .....एक साथ मल्टी टास्किंग करते हुए मगजकी अच्छी खासी कसरत करती थी ....
सुबह दूध उबलने के साथ रोटी का आंटा  गूँथ लेना ..मशीनमें कपडे चलते रहते और सब्जी कट जाती है ....सब जगह कोल्हू के बैल की तरह भागना ...फिर चाय बनाते हुए डब्बे पेक करना ....एक औरत जिन्दा थी हर वक्त ...
फिर अचानक एक टीचर बन गयी ..जिंदगी की पाठशाला की टीचर ..मेरी संतान की टीचर ...उसे सिखाया ...कभी रोटी कभी सब्जी बनाना ...कभी बाज़ारसे चीजे खरीदने भेजना ..फिर उसकी गलती के लिए डांटना नहीं पर धीरे से उसे समजाना ..उसकी पढाई करिअर सबके बारे में चर्चा करना रोटी करते हुए ...
एक दिन बीमार हुई एक महीने तक बिस्तर नहीं छुटा ...तब बेटीने पूरा घर संभाला तब जाकर पता चला की हा  एक एक करके उसको सिखाया था और जो भी उसने सिखा ये दोनोकी इम्तिहान की घडी थी ...जिसमे कोई क्लास नहीं मिला फिर भी दोनों पास हो गए ....बस संतान को जूझते सिखाते है तब सिर्फ गाइड बनकर जीना पड़ता है ..रोजमर्रे के काम वो करते है और हम वक्त के साथ बैठे हुए उसका मुआयना करते है ....
ये होता है ढेर सारा वक्त जो दुनिया को नहीं मिलता ....आपकी सही मायने में परीक्षा आपके संतान कैसे दुनिया के मैदानमें आते है तब होती है ...ये सवाल इनके अभ्यास और नौकरी या कमाई सम्बन्धी नहीं पर एक इंसान के तौर पर कैसे खरे उतरते है उस पर निर्भर रहता है ....याद रखो की आप पर कोई चौबीस घंटे नज़र न रखते हुए भी नज़र रखता है ...हर छोटी बड़ी बातें मैंने उसे रसोई घर में बतायी हती ...यादों के शहर का ये अहम् हिस्सा था ....वो किसीको नहीं मिली पर मेरे भुतकाल के अहम् किरदारोंसे शाब्दिक परिचय करवाया था ...अब फेसबुक के जरिये वो भी सबसे मिली है  ..उसकी भी रिश्तो की दुनिया बढती गयी है ...मेरी तरह मल्टी टास्किंग करती हुई मेरे लिए फुर्सतके पल छोड़ देती है ....
इन लम्हों को बहाकर जिंदगी ले जाती है आगे ...फिर भी इंसान हूँ कुछ लम्हे को रोक लेने को जी करता है मेरा ...यादों के शहर में एक घर जो अभी चहचहाता है ...एक गोरैया के साथ ....

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