26 अप्रैल 2012

धूपका टुकड़ा ....

धूपके तीन टुकड़े गिर पड़े जमीं पर 
मेरे आंगनमे गिरा ये धूपका टुकड़ा ,
मानो जैसे बरफकी ठंडक लिए सिली सिली ,
जिससे गुजरके हर किरण बँट गयी सात रंगोमे ....
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एक रोटीका टुकड़ा फेंक दिया था बच्चेने खिड़कीसे ,
एक कुत्ता और एक इंसान दोनों ज़पट पड़े उस पर ,
एकके पेटमें गढ्ढा था ,एकके गढढेमें शायद पेट था ,
इंसान शायद यहाँ लगा कुत्तेसे भी ज्यादा बेबस था ....
कुत्ते को पेट भरनेके लिए कोई नियम न थे ,
पर इंसान तो उसके लिए हरे कागज़का मोहताज था ...
जो इंसानके पास आज शायद नहीं था ....
और उसकी वजह वो खिड़की थी ,वो बच्चा था ,वो मानुष था ,
जिसके लिए फेंकनेके लिए भी रोटी का टुकड़ा था ....

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