चलो चलो कहीं दूर भाग चलते है ,
भागते भागते रुकी जब सांस -
तो देखा
इंसानोकी बस्ती दूर कहीं पीछे छुट रही थी ,
घने तने लिए ये दरख्त सदियोंसे
अपनी जगह रोककर खड़े थे ,
उनके शाखें और पत्तियां फ़ैल जाते
सूख जाते या टूट जाते ,
फूल खिलते या फल बनते ,
उन पर कभी घरौंदे बनते या पंछी चहकते
कोई मौसमका उनपर कोई फर्क नहीं ,
वो तो बस ध्यानस्थ योगी की तरह
अपनी जगह पर खड़े हुए ,
न आंधी न तूफान ,न धूप न बरसात ,
न कड़ाकेकी ठण्ड न बहारों-पतज़दका मौसम ...
क्या फर्क पड़ता है इन संन्यासियोंको ???
हाँ ये तो हमें खुद तय करना है कि:
कि हमें किन बातोंसे फर्क पड़ना चाहिए !!!
और हम लौट चले इंसानों की बस्तीमे
फिर से पर एक सोच साथथी ...
वही दरख्तोंवाली !!!! अब जीना रास आएगा फिरसे ....
भागते भागते रुकी जब सांस -
तो देखा
इंसानोकी बस्ती दूर कहीं पीछे छुट रही थी ,
घने तने लिए ये दरख्त सदियोंसे
अपनी जगह रोककर खड़े थे ,
उनके शाखें और पत्तियां फ़ैल जाते
सूख जाते या टूट जाते ,
फूल खिलते या फल बनते ,
उन पर कभी घरौंदे बनते या पंछी चहकते
कोई मौसमका उनपर कोई फर्क नहीं ,
वो तो बस ध्यानस्थ योगी की तरह
अपनी जगह पर खड़े हुए ,
न आंधी न तूफान ,न धूप न बरसात ,
न कड़ाकेकी ठण्ड न बहारों-पतज़दका मौसम ...
क्या फर्क पड़ता है इन संन्यासियोंको ???
हाँ ये तो हमें खुद तय करना है कि:
कि हमें किन बातोंसे फर्क पड़ना चाहिए !!!
और हम लौट चले इंसानों की बस्तीमे
फिर से पर एक सोच साथथी ...
वही दरख्तोंवाली !!!! अब जीना रास आएगा फिरसे ....
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