एक घरकी छत पर बैठा था एक परिंदा ,
थोडा सा सहमा थोडा सा घबराकर ,
बस थोड़ी देर बाद वो फिर उड़ने चला
और सामनेके पेड़ पर बैठ गया ......
बस भय की एक लहर होती है तेज धड़कन
वो जब सामान्य सी हो जाय तो
उड़ान फिर शुरू करो ...
बस ये बात हम समजदार इंसान नहीं समज पाए
आज तक ..अभी तक ...
क्यों सर पटककर रोते है
बंद दरवाजोकी किवाड़ोंसे ....
जब मंजिलें और भी होती है
इस राहसे पलटकर !!!!!!
थोडा सा सहमा थोडा सा घबराकर ,
बस थोड़ी देर बाद वो फिर उड़ने चला
और सामनेके पेड़ पर बैठ गया ......
बस भय की एक लहर होती है तेज धड़कन
वो जब सामान्य सी हो जाय तो
उड़ान फिर शुरू करो ...
बस ये बात हम समजदार इंसान नहीं समज पाए
आज तक ..अभी तक ...
क्यों सर पटककर रोते है
बंद दरवाजोकी किवाड़ोंसे ....
जब मंजिलें और भी होती है
इस राहसे पलटकर !!!!!!
बेहतरीन अभिव्यक्ति.....
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