23 जुलाई 2011

एक कब्र ...

सतरंगी बारिशकी चुनर श्यामा हो गयी ,


क्या कहें क्या रहा होगा तुम्हारा नज़रे करम !!!


मेरी हर ख्वाहिश दबी हुई फिर जवां हो गयी ,


एक गरीबके नसीब पर सारी कायनात मेहरबां हो गयी !!!!!!


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ना सोचा था ये भी होगा प्यारमें कभी


आरजूके सारे दरीचे इश्ककी कब्र पर


कफ़न बनकर सज जायेंगे हमारी ,


वो हमें जिन्दा गाढकर दफ़न कर जायेंगे !!!!!


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इस ठोकरने सिखाया हमें ,


गैर तो गैर ही रहेंगे हमारे ना हो पाएंगे ,


आपकी हर वफ़ाकी कीमत


सारे जहाँकी दीवारों पर


हमें बेवफा करार कर दिया ....


हमें रुसवा करके सरे बाज़ार नीलाम कर दिया .....


फिर भी शुक्रिया आपका ,


तुम्हारे दिलमें नफ़रत और हमारे दिलमें प्यार बनकर


इश्कका नाम ऊँचा कर दिया ........

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