1 जुलाई 2011

एक नन्हा सा ख्वाब ......

कभी ढलती हुई शामके आंचल तले
छुपकर एक ख्वाब बैठा होता है ....
नन्हे बच्चे जैसा .....
कभी खड़ा होता ,कभी संभलता ,कभी गिरता हुआ ,
लेकिन अपनी भोलीसी सूरत पर सच्ची हँसी लिए .......
वो ख्वाब जिसे आंचलमें भरने को दिल करता है मेरा ,
अपनी गोदमें बैठकर खूब सहेलाऊ उसे .....
वो मेरी गोदमें सोया रहे ,
और मैं उसके लिए एक लोरी सुनाती रहूँ शबभर ..........
वो शामका आंचल धीरे धीरे सुर्खसे श्याममें बदलकर ,
मेरे ख्वाबको पंख देकर उडा ले जाता है .....
एय ख्वाब तेरे ख्वाबको भी क्यों तरस जाऊं ???
इतना बड़ा धोखा सूरज चाँदके भेसमें आकर दे जाता हो जैसे ..............

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