4 जून 2011

सब कुछ उल्टा पुल्टा

मुझे मना मत करो ....
मेरी कल्पनाओका घरौंदा आज सजाना है ,
मोर के पांवमें घुंघरू बांध दूँ ....
आकाश को समुन्दरकी लहरोंसे नहला दूँ ...
चांदनी कांप रही है थर थर क्यों ???
उसे सूरजकी किरणोंका कम्बल ओढ़ाकर सुला दूँ ....
बांसुरी का गला सुख रहा है प्याससे ,
उसे ठन्डे ठन्डे नदियाँके लहरमें नहला दूँ ???
बहती हवाको एकतारेके तारमें बांध दूँ !!!!
बस एक ख्वाहिशका मनचला तूफ़ान
तहस नहस कर रहा है कोर कागज़ को इठलाता हुआ ....
चलो उसे अल्फाज़ की ज़ंजीरमें बांधकर कविता बना दू !!!!!

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