3 मई 2011

चाँद की तश्तरी



चाँदकी तश्तरी सजी थी आसमांकी मेज पर ,

एक तस्वीर बनाकर चाँदकी

सजा दी रातकी दीवारों पर ,

रात हंस पड़ी ,तारे खिल गए मुस्कराहटसे ,चाँद भी शरमा गया ....

पूनम का था या चौदहवी का ये तो नहीं मालूम ,

फिर भी फिजामें कोई सूर बिखरने लगा ....

ये आफताबकी गर्मी थी

फिर भी माहताब पिघलता चला ,

बस इंतज़ारमें आफ़ताबके

ये चाँद निगोड़ा क्यों जलने लगा ?????

उसकी लपटोंसे टपक टपक शबनम ,

तकिये को भिगाने लगी ,

मुझे भी कोई याद आ गया इस तरह ,

मैं भी चांदनीके संग जलने लगी .....

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