7 अप्रैल 2011

एक माँकी मुक्ति

रन्नाका मोबाइल बजा ...
बेटी झील का फोन था इंडियासे ....
झील ने कहा : माँ जल्दी वापस आ जाओ ..पापा की तबियत बहुत ही ख़राब हो चुकी है ...डॉक्टरने भी कह दिया है अब दवा नहीं दुआ काम करेगी ...
रन्नाने लौटने को हामी भरी ...
उसने एक फॉर्म पर दस्तखत कर दिए और अर्जंटमें फ्लाईटकी टिकट बुक करा दी ...
रात को वह फिर इंडियामें सूरतमें अपने घर लौट गयी ... सारे रिश्तेदार जमा हो चुके थे ...उसने रोहन यानि की उसके पति की और देखा ....आँखें तो गहरी हो चुकी थी ..साँसे नाम की चल रही थी ...जाने उनको भी रन्ना के लौटनेका इंतज़ार था ..उसने जबरदस्ती दो हाथ उठाये और उसके आगे जोड़े ....उसने धीरे से उसे पकड़ कर नीचे रख दिए ....रोहनकी साँसे रूक गयी ....कमरा सिसकियोंसे भरने लगा ....अंतिम यात्रा की तैयारीमें सब जुट गए ....
रन्ना धीरेसे बालकनीके झूले पर जाकर बैठ गयी ...उसमे कोई विचार ठहरा नहीं था ...बस एक स्थितप्रग्य की तरह बैठी रही .... बारह दिन सारे संस्कार पुरे हो गए ...रन्ना बेग भरने लगी ...
बेटी झील चौंक गयी ... उसने कहा : माँ ये कहाँ की तैयारी हो रही है ???
रन्नाने कहा : मैं वापस अमेरिका जा रही हूँ ...मुझे हमेशा के लिए उस यूनिवर्सिटीमें पढ़ानेके लिए ऑफर मिली है ...और मैंने उस ऑफरके स्वीकृतिपत्र पर यहाँ लौटने से पहले ही दस्तखत कर दिए है ...मुझे अगले सोमवार उधर हाजिर होना है ....
बेटे अमरने कहा : माँ आप मेरे साथ लन्दन चलोगी ...आपकी बहु अलका को भी डिलीवरी आने वाली है ...अब आप मेरे साथ ही रहोगी ...आप अगर अलग रहोगी तो हमें आपकी चिंता रहेगी ...
बेटी झीलने कहा : माँ यहाँ की सारी प्रोपर्टी का क्या करना है ...आपको अभी कितने काम करने है .........उसने रन्नाको खूब खरी खोटी सुनाई ...उसने वहां तक कहा की जो बीवी के फ़र्ज़ थे रन्ना उसे चुक गयी ...उसने पापाकी मौत के लिए रन्ना को जिम्मेदार ठहराया ....
रन्नाने के पावर ऑफ़ एटोर्नी का लेटर पर्ससे निकाल कर उसके हाथमें रख दिया ...जिसमे झीलके नाम सारे पावर लिख दिए थे ... तब चित्रा जो रन्ना की दोस्त थी वो कमरेमें दाखिल हुई ....
झीलने उसे माँ को समजानेके लिए कहा ....
चित्राके होठ पर एक फीकी हँसी आ गयी ....
झीलके तेवर देखकर उसे अंदाजा हो चूका था की यहाँ क्या हुआ होगा ....
चित्राने हाथमें पानी का गिलास लिया और कहा : क्या तुमने तुम्हारी माँ के झख्म को कभी महसूस किया है जो तुम्हारे पिताजीने उसे दिए है .....उसके शरीर पर जो मार के दाग होते थे उसका दर्द महसूस किया था ...तुम्हारे पिताजी की जब ज्यादतियां हद पार हो गयी तब उसने तुम दोनों को हॉस्टल भेज दिया ...ये जो प्रोपर्टी है ना उसे तो तुम्हारे पिताजी कबके गिरवी रख चुके थे ...तुम्हारी माँ ने पुरे व्यापार को अपने हाथमें लिया और आज इस मक़ाम तक पहुँचाया ...अकेले ही ...तुम्हारे पिताजी तो हफ्ते में एक बार जाते थे अपनी ऐयाशी के लिए पैसे लेने ...जिसे तुम्हारी माँ ने दिए भी .... एक सांसके लिए चित्रा रुकी ...
फिर कहा : उसने हर जुर्म सहे तुम दोनों के खातिर ...तुम्हारा संसार भी बसाया ...तुम्हारी माँ एक बड़ी ही अच्छी चित्रकार थी ...आज अमेरिका की यूनिवर्सिटीमें वो भारतीय चित्रकला की प्रोफ़ेसर है जो उसका पेशन रहा है हमेशा से .... तुम दोनों के शादी के बाद उसने चुपचाप अपने जुल्मके खिलाफ आवाज उठाई ...उसने सारा कारोबार बेच दिया ...और सारे पैसे एक ट्रस्ट के सुपुर्द करके खुद अपनी कला की आराधना के लिए चली गयी .....तुम्हारे पिताजीने पिछले सात सालसे उसकी कोई खबर नहीं ली ....सारी प्रोपर्टी एक ट्रस्ट के पास है ...वो तुम्हारे पिताजी को पहले की तरह पैसे देते रहे ...और जब वो बीमार हो गए तब उन्होंने तुम्हारी माँ को बुलाया ...पर वो नहीं लौटी ...आज तक उसने तुम्हारे खातिर सारे जुर्म सहे ..अब उसे तुम दोनों मुक्ति दो ...अपने फ़र्ज़से ...... रन्ना चली गयी ....दोनों संतानके आंसू भी उसे रोक नहीं पाए .....क्योंकि वो जानती थी की इतने साल उसके संतानोंने भी उसकी कोई फ़िक्र नहीं की थी ..अब उन्हें उसकी गरज थी इस लिए वो उसे रोक रहे थे ..... सिर्फ चित्रा ही उसके साथ थी ......

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