शब्द जब हिजाब कर लेते है
शक्ल ख़ामोशीकी इख्तियार होती है ....
घूँघट खोलकर निकलती है ख़ामोशी
शब्दका चेहरा नज़र आता है .....
शबनम शब्दकी हथेली पर धर लो जरा ,
एक नायाब शायरी बन जाती है ......
शबनमी शब्द सरकते है कलमसे
एक नज़्मकी नजाकत निखर जाती है .....
खंजर बनकर वार करते है कभी शब्द तो
चुभन लहूलुहान किसी दिल को कर जाते है ....
कोई शब्द मरहम बनते हुए ,
नासूर बन बैठे हर झख्मको भर जाते है .....
शब्दके साहिल कलम की नाव पर
सौ समंदरकी गहराई भी छूकर आते है ......
शब्द मासूमसे किसी की मुस्कराहटमें बस जाते है
खुदा खुद आकर तब उसकी तक़दीर लिख जाते है ....
जिंदगी मेरे लिए ख्वाबोंके बादल पर उड़नेवाली परी है .!! जो हर पल को जोड़ते हुए बनती है, और उन हर पलोंमें छुपी एक जिंदगी होती है ....
13 अप्रैल 2011
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
विशिष्ट पोस्ट
मैं यशोमी हूँ बस यशोमी ...!!!!!
आज एक ऐसी कहानी प्रस्तुत करने जा रही हूँ जो लिखना मेरे लिए अपने आपको ही चेलेंज बन गया था । चाह कर के भी मैं एक रोमांटिक कहानी लिख नहीं पायी ...

-
खिड़की से झांका तो गीली सड़क नजर आई , बादलकी कालिमा थोड़ी सी कम नजर आई। गौरसे देखा उस बड़े दरख़्त को आईना बनाकर, कोमल शिशुसी बूंदों की बौछा...
-
रात आकर मरहम लगाती, फिर भी सुबह धरती जलन से कराहती , पानी भी उबलता मटके में ये धरती क्यों रोती दिनमें ??? मानव रोता , पंछी रोते, रोते प्...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें