शब्द जब हिजाब कर लेते है
शक्ल ख़ामोशीकी इख्तियार होती है ....
घूँघट खोलकर निकलती है ख़ामोशी
शब्दका चेहरा नज़र आता है .....
शबनम शब्दकी हथेली पर धर लो जरा ,
एक नायाब शायरी बन जाती है ......
शबनमी शब्द सरकते है कलमसे
एक नज़्मकी नजाकत निखर जाती है .....
खंजर बनकर वार करते है कभी शब्द तो
चुभन लहूलुहान किसी दिल को कर जाते है ....
कोई शब्द मरहम बनते हुए ,
नासूर बन बैठे हर झख्मको भर जाते है .....
शब्दके साहिल कलम की नाव पर
सौ समंदरकी गहराई भी छूकर आते है ......
शब्द मासूमसे किसी की मुस्कराहटमें बस जाते है
खुदा खुद आकर तब उसकी तक़दीर लिख जाते है ....
जिंदगी मेरे लिए ख्वाबोंके बादल पर उड़नेवाली परी है .!! जो हर पल को जोड़ते हुए बनती है, और उन हर पलोंमें छुपी एक जिंदगी होती है ....
13 अप्रैल 2011
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