वही वादियाँ ,वही गली कुचे ,वही हम तुम !!!!
फिर भी रोज अजनबीसे
मिलते बिछड़ते
याददास्तकी किवाड़ोंके पीछेसे
बकाया कुछ अफसाने
दस्तक अभी देते रहते है मुझे ....
पूछते हुए पहचाना मुझे ???
मुंह फेर कर चले जाना मुनासिब होगा ...
फूलों की चाहतमें एक बार और
शोलोंकी लपटोंको छू लिया था ...
उन छालोंकी जलन नासूर बनी है इस दिल पर
वो रातके कम्बलको लपेटे
तकिये के निचे दबी सिसकिया
अभी ताज़ा है एक अश्क बनकर आँखों के कोने पर ....
जिंदगी मेरे लिए ख्वाबोंके बादल पर उड़नेवाली परी है .!! जो हर पल को जोड़ते हुए बनती है, और उन हर पलोंमें छुपी एक जिंदगी होती है ....
18 अगस्त 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
विशिष्ट पोस्ट
मैं यशोमी हूँ बस यशोमी ...!!!!!
आज एक ऐसी कहानी प्रस्तुत करने जा रही हूँ जो लिखना मेरे लिए अपने आपको ही चेलेंज बन गया था । चाह कर के भी मैं एक रोमांटिक कहानी लिख नहीं पायी ...

-
खिड़की से झांका तो गीली सड़क नजर आई , बादलकी कालिमा थोड़ी सी कम नजर आई। गौरसे देखा उस बड़े दरख़्त को आईना बनाकर, कोमल शिशुसी बूंदों की बौछा...
-
रात आकर मरहम लगाती, फिर भी सुबह धरती जलन से कराहती , पानी भी उबलता मटके में ये धरती क्यों रोती दिनमें ??? मानव रोता , पंछी रोते, रोते प्...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें