5 जून 2010

विश्व पर्यावरण दिवस


एक छोटासा बीज कितने रहस्योंको समेटकर खुदमें

अपने वजूदको जमींमें छुपा लेता है !!!!

गीली सिली मिटटीमें एक प्रसव पीड़ा से ज़ुजता है

और फिर उस बीज एक पौधा बनकर पनपता है .....

कितनी शाखें !!!!!कितने पत्ते !!!!!

एक तनेकी बाँहोंमें झूल जाते है ....

उस बीज के अंश लेकर कुछ फूल भी शाखों पर निकल आते है ॥

उस फूल पर भी जवानी निखर आती है !!!!

और वो फल बनकर डाली पर झूल जाता है ...

पहले कच्चे रूपमें निकल फिर पक जाता है .....

उसके गर्भमें भी एक बीज जन्म ले लेता है ...

फिर एक दिन मिटटीमें मिलकर वो भी येही कहानी दोहराता है ...

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