ना निगाहें मिली थी ना कोई फ़साना बना था
बेगानोंके इस जहाँमें फिर भी कोई अपना सा था .....
====================================
इंतज़ारका शहद घोलता गया
इकरार भी प्यास छोड़ता गया ,
आँखोंमें उनके आने का बहाना ,
मिलनेकी बेकरारी छोड़ता गया .......
================================
शिकवे शिकायत का ये मौसम तो नहीं ,
दूरी भी बन सकती है मजबूरी कभी
ये हमें आपको बयां ना कर पाए कभी
क्योंकि ...
एक निगाह काफी है इजहारे इश्कमें
कोई लम्बी तकरीर की जरूरत नहीं .....
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें