ये झूठी मुस्कानका नकाब पहने थक गए है हम ,
बस अब तो ये नकाब फाड़ देते है ,
असली चेहरा देखकर दुनिया उम्मीदें बांधना छोड़ देगी ,
ये ही सोचकर हलके महसूस हो जाते है .....
खुले चेहरेसे जब दुनिया को देखा
दंग रह जाना हमारा लाज़मी था ,
हर चेहरा सामने था वो शायद हमसे भी ज्यादा
इस दुनियाके गम झेल चुका था .....
फ़िर क्यों हमें ही गिले शिकवे थे जिंदगीसे ,
ये सवाल हमारा ही था और हम पर छोड़ गए थे .....
शायद ये होती है हमारे मनकी पैदा की हुई तकलीफें ,
बस आयना बदलते ही तस्वीर बदलने लगती है ....
आईना बदलते ही तस्वीर बदलने लगती है , बस ये बहुत ही सुंदर बात कही है आपने |
जवाब देंहटाएंसचमुच अपनी जो शक्ल या अपने बारे में हम अपनी जो राय बना लेते है , वो ही हमारा दर्पण है |
खुले चेहरेसे जब दुनिया को देखा
जवाब देंहटाएंदंग रह जाना हमारा लाज़मी था ,
संवेदनशील रचना। बधाई।