28 जुलाई 2009

गुजारिश

आज कुछ बोलने का दिल नहीं करता ,

आज मन कहता है बस तुम्हे सुनते ही रहे ,

डर है वक्त चला जाएगा हमसे दूर ,

और बात करते हुए शाम ढल जाए ......

वक्त को बाँध देती हूँ मौनकी डोर से ,

रेतको थाम लेती हूँ हाथसे फिसल न जाए ,

मंज़र ये हँसी है ढलती हुई शाम का

वक्त को गुजारिश है कुछ देर और ठहर जाओ ......

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