7 जुलाई 2009

गुरुपूर्णिमा ......

आज गुरु पूर्णिमा है ...

माँ हमारा पहला गुरु है ।

पिता और माता के दिए गए संस्कार हमारे जीवन को सही दिशा देते है ।

विद्यापीठ के गुरु ज्ञान के दरवाजे हमारे लिए खोलते है ।

लेकिन जिंदगी से बड़ी यूनिवर्सिटी कोई नहीं जिसका हर दिन उगने वाला सूरज हमें कुछ न कुछ नया सिखाता है और अपने संस्कार से आधार पर हम अपने जीवनको बना या बिगाड़ सकते है ।

हमारी अंतरात्मा हमारी राहबर है जिसे सही ग़लत की पहचान होती है ........

ज्ञान और गुरु को कोई उमर का बंधन नहीं होता ...एक छोटा सा बच्चा जब चलना सीखता है तो कई बार गिरता है और फ़िर उठकर कोशिश जारी रखता है और जब तक चलना नहीं सिखाता तब तक रुकता नहीं .जिंदगी का पहला सबक तो वही सिखाता है ...किसी भी हालत में वह दिल से हसता है या रोता है ...बनावट कहीं नहीं होती ...

आज एक बात बताती हूँ :

पिछले हफ्ते एक बच्चे ने ये कहा था :

हम कुछ भी कर सकने को सक्षम है ....हम भी कामियाब हो सकते है ...जो कोशिश करते है उनकी कभी हार नहीं होती ....हम जो थान लेते है वह कर सकते है ...

बड़े आम लगने वाली बात है पर ये कही वो अठारह साल का बच्चा है ...उसे सेरेब्रल पालसी हुआ था जन्म के वक्त ही ...ब्रेन की नस दब गई और वह अपाहिज हो गया और मेंटली चेलेंज भी ...उसने तीसरी ट्रायल में दसवी कक्षा का बोर्ड इम्तेहान पास किया ....ठीक से चल नहीं सकता ..पर खेलते वक्त उसके नाम की चिठ्ठी में ५ बार कूदने का आया तो उसने कहा मैंने कूद लगाऊंगा ...मैं ये जरूर कर सकता हूँ ...और उसने ये सफलता से किया ...

इस बच्चे ने एक ऐसा सबक दिया जो किसी पाठशाला में शायद पढाया जाता होगा ...गुरु देवो भव .....!!!

पिछले एक महीने से मैं ये मंद बुध्धि के बच्चों के स्कुल में स्वयंसेवक के तौर पर जाती हूँ ...सोचा था मैं उन्हें कुछ सिखा सकती हूँ ...पर मैं हर रोज उनसे कुछ सीखकर आती हूँ ....

ये दुनिया सबसे बड़ी पाठशाला है और जिंदगी हमारी शिक्षक ...!!!!

1 टिप्पणी:

विशिष्ट पोस्ट

मैं यशोमी हूँ बस यशोमी ...!!!!!

आज एक ऐसी कहानी प्रस्तुत करने जा रही हूँ जो लिखना मेरे लिए अपने आपको ही चेलेंज बन गया था । चाह कर के भी मैं एक रोमांटिक कहानी लिख नहीं पायी ...