वो रेल की पटरी पर दौड़ती हुई ट्रेन को एकटुक देखा थोडी देर के लिए ,
न मंजिल के पास थी वह न मंजिल से दूर कहीं बस गति से बहती सरपट ....
एक मंजिलसे निकलकर वह दुसरे स्टेशन पर जाती रहती है ,
न कभी थकती कभी न हांफती नज़र आती है ,बस वह तो चलती जाती है ......
वो अपने पेटमें बिठाकर इंसानोंको मकाम तक पहुंचाती है ,
बिना नदीमें नहाकर बस पूल परसे छलांगे लगाकर भागती है .......
कभी पहाडियोंमें अंगडाई लेकर इठलाती चलती है ,
कभी जमींके अन्दर भी छुपकर दौड़ने में उसे मज़ा आती है ..........
वो दाल के ठेले ,या समोसे के मेले , डब्बे का आइसक्रीम या चीजोंके रेले ,
चलती फिरती दुकाने अपने में चलाकर कई पेट को पालती है ........
खिड़की वाली सीट पर बैठकर दुनिया की सैर करके देखो ,
जवानीमें बचपनकी और बुढापेमें कई गुजरी कहानी याद दिलाती है ....
जिंदगी मेरे लिए ख्वाबोंके बादल पर उड़नेवाली परी है .!! जो हर पल को जोड़ते हुए बनती है, और उन हर पलोंमें छुपी एक जिंदगी होती है ....
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बहुत खूब ....इसके माध्यम से बहुत सही बात कही
जवाब देंहटाएंमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
खिड़की वाली सीट पर बैठकर दुनिया की सैर करके देखो ,
जवाब देंहटाएंजवानीमें बचपनकी और बुढापेमें कई गुजरी कहानी याद दिलाती है .... waah kya gehri baat keh di,bahut sunder
रेल को लेकर इस तरह से भी सोचा जा सकता है, यह देख कर अच्छा लगा। अपने विचारों को हमारे साथ साझा करने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएं----------
TSALIIM.
-SBA-
रेल की बात ही निराली है.
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