साहिल पर वो निशां बाकी है अभी
दो कदम तुम्हारे थे दो कदम हमारे थे ....
साथ साथ बहते रहे ,चलते रहे यूँही हम ,
पैरोंमें सागर की मौजे सहलाती रही हरदम ,
ठंडी हवाओके नर्म झोकें जुल्फोसे तुम्हारी खेलते रहे .....
साथ साथ रहकर साथ साथ चलकर भी
तनहा तनहा से हम यूँही मिलते रहे ......
कारवां ये सफरका न जाने किस तलाशमें है ???
दरिया को तैर कर आ गए और साहिल पर हम डूबते रहे ........
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आपकी राहोंमें फूल बन कर बिछ जाने की चाहत थी हमें ,
गम नहीं की फूल चुनते हुए हथेली ये काँटोंसे लहूलुहान हो गई .......
bahut khub
जवाब देंहटाएंवाह भाई वाह ...बहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंसाथ साथ रहकर साथ साथ चलकर भी
तनहा तनहा से हम यूँही मिलते रहे ......
अच्छी रचना ......पसंद आयी
अनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति