11 जनवरी 2009

सपने ये गीलेसे सीलेसे .....




सपने है आँखोंमें कुछ गीलेसे.. भीगेसे ..

पलकोंमे छुपाकर रखे है ।

किसीकी नजर न पड़ जाए उस पर ,

इस तरह इस चिलमनमें छुपाकर रखे है .....


गुजारिश की है हमने इन आंखोंको

पलकें न तुम तेज झपकाना ,

आँखें अगर मोती भी बरसायें कभी तो

तुम उन्हें पलकों पर थाम लेना ,

क्योंकि बड़े नाजुक ये होते है ये सपने ..........


एक पतलेसे शीशे पर तराशे होते है ये सपने ,

आंखोंमें सजते है जब रंग भर जाते है ये सपने ....

ठेस कभी लग जाए दिलको यदि ,

तो रेतके महलोंसे बिखर जाते है ये सपने ,

तब बाँध पलकोंका तोड़कर

टुकडोंमें बह जाते है ये सपने ......

बहते ये अश्क आंखोंसे मगर

ज़ख्म दिल पर छोड़ जाते है ये ...

कसूर उन ख्वाबों का होता है फ़िर भी ,

दिल को तड़पनेकी सज़ा दे जाते है ये सपने .

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर कविता है दिल को छू गयी

    ---मेरा पृष्ठ
    तख़लीक़-ए-नज़र

    जवाब देंहटाएं
  2. बहते ये अश्क आंखोंसे मगर

    ज़ख्म दिल पर छोड़ जाते है ये ...

    कसूर उन ख्वाबों का होता है फ़िर भी ,

    दिल को तड़पनेकी सज़ा दे जाते है ये सपने .

    wah....!!! bahut khub kaha aapne....

    जवाब देंहटाएं
  3. सपने ये गिले गिले से ..वह क्या भाव है बहोत बढ़िया नज़्म लिखे है आपने ... बहोत खूब मेरी नई ग़ज़ल को पढ़ें उम्मीद करता हूँ पसंद आएगी.......

    अर्श

    जवाब देंहटाएं

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