25 दिसंबर 2013

एक नायाब सा पल

एक नायाब सा पल बैठ जाता है सिरहाने पर ,
मैं सपना समजकर फिर से आँखे मूंद लेती हूँ  ....
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इश्क़ के रंग को ढूंढ रही थी हर रूप में ,
पर वो था पानी के रंग का हवा सा घुला  …
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बदरंग बदहवास नहीं होती है जिंदगी कभी ,
वो हमारी बदगुमानी और बदनियत का आयना बन जाती है कभी कभी  …
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हर वक्त मिल जाते है दोराहे हमें जिंदगी में ,
बस वो हम ही होते है सहूलियत के हिसाबसे चल देते है  ,
वो दो राह दिल और दिमाग की जंग होती है ,
दिल सोचता है अच्छी मंजिल और दिमाग चुनता है सरल राह !!!!!!

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