18 दिसंबर 2012

ये ही खता कर जाता है ....

मेरे मौन के समुंदर का पानी गहरा नहीं था ,
फिर भी तुम कैसे डूबते चले गए यूँ ????
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कुछ भी कहे बिना चले जाना तुम्हारा
ये ही सबसे बड़ी सजा दे दी तुमने मेरे इल्जामों की ...
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न किसी आहट पर रुकता है ,न कोई पुकार सुनता है ,
गुम जाता है जब तुम्हारे खयालो मे दिल ये ही खता कर जाता है ....
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वो भी हमें छोड़कर चल दिए तो कोई गम नहीं अब ,
वर्ना उनका दिल टूट गया तो ?? इस डर में सहम जाते थे हम .....

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब क्या कहने ...

    इन शब्दों के बिच अन्तराल बना ले जेसे "मौन के" "इल्जामों की" "खयालो में" "डर में"

    मेरी नई कविता आपके इंतज़ार में है: नम मौसम, भीगी जमीं ..

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