याद रखना तुम्हें मुनासिब न था ,
भूल जाना भी तुम्हें मुमकिन न था ..
जिंदगी के एक मोड़ से तुम मुड़े ,
दूसरे छोरसे मेरा आना वाजिब न था ...
माना जुदा थी तुम्हारी राहें मुझसे ,
माना मेरी मंज़िल के अफ़साने भी अलग ,
बस चार कदम साथ चलने का बहाना था ,
अकेले चलते रहे भले एक कारवां साथ था ...
तुम्हें याद रखु तो किस नाम से ??
तुम्हें पुकारूँ कभी तो किस नाम से ??
बिछड़ते वक्त तक दूर से सिर्फ निगाहें मिली थी ,
और आँखों के फलक पर तुम्हारा नाम लिखा न था ...
चलो अजनबी तुम अजनबी हम ,
दो पल आँखों से लिखा वो तक़दीर का अफसाना था ..
तुम्हें याद रख लूंगा तस्वीर कहकर ,
तुम्हें भुला दूंगा तक़दीर कहकर ....
भूल जाना भी तुम्हें मुमकिन न था ..
जिंदगी के एक मोड़ से तुम मुड़े ,
दूसरे छोरसे मेरा आना वाजिब न था ...
माना जुदा थी तुम्हारी राहें मुझसे ,
माना मेरी मंज़िल के अफ़साने भी अलग ,
बस चार कदम साथ चलने का बहाना था ,
अकेले चलते रहे भले एक कारवां साथ था ...
तुम्हें याद रखु तो किस नाम से ??
तुम्हें पुकारूँ कभी तो किस नाम से ??
बिछड़ते वक्त तक दूर से सिर्फ निगाहें मिली थी ,
और आँखों के फलक पर तुम्हारा नाम लिखा न था ...
चलो अजनबी तुम अजनबी हम ,
दो पल आँखों से लिखा वो तक़दीर का अफसाना था ..
तुम्हें याद रख लूंगा तस्वीर कहकर ,
तुम्हें भुला दूंगा तक़दीर कहकर ....
हर एक पंक्ति जीवन को परिभाषित करती हुई । उत्तम रचना ।
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