23 फ़रवरी 2017

अफसाना

कोई अफसाना कहता है कोई हकीकत  ,
जीते है कुछ लोग अफसानों को ऐसे ,
फितरत ही हो जिनकी जैसे वो हकीकत  ...
सोच से ऊपर उठने वाले सपनों को जी लेते है  ,
सोच कर जो तकते है आसमाँ वो जी लेते है ???
किसी की सोच को दफनाकर क्या दब जाती है वो ???
कल किसी और के जहनमें आ जाती है वो  ...
हकीकत जीते जीते जिंदगी उनकी अफसाना बन जाती है  ,
उनकी सोच सपनों के परवाज़ पर सवार ,
आसमानों को छू जाती है  बनकर फिर हकीकत  ...
तन्हाई बहुत जरुरी है इन लमहों को जीने के लिए  ,
मरने  के बाद अफ़साने जिन्दा रहते है  ,
हकीकत तस्वीर बन दीवारों पर टंगी पायी जाती है  ..... 

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