जहमत होती है पलकों को भी उठने के लिए ,
वो तेरे चेहरे के सहारे संभलती है लड़खड़ाने से ....
यूँ गुमाँ मत करो अपने हुस्नका सरेआम ,
घायल हुए दिलसे भी आह निकलती है ....
हुस्न तो वो पाक नियामत है उपरवाले की ,
उसके रहमोकरम पर उसकी इबादत करो ....
तुम समजते रहे की हम तुमसे बेपनाह मोहब्बत करते है ,
ये तुम्हारी खुशफहमी थी जिसे हम
ग़लतफ़हमी करार दे न सके ......
तुम्हारी आवाज में वो पाकीजगी थी
की हमें उपरवाले की तस्वीर दीखाई देती थी ,
कैसे कहें हम इस आँख से कभी
इस दुनिया का भी दीदार न कर सके है ...!!!!
वो तेरे चेहरे के सहारे संभलती है लड़खड़ाने से ....
यूँ गुमाँ मत करो अपने हुस्नका सरेआम ,
घायल हुए दिलसे भी आह निकलती है ....
हुस्न तो वो पाक नियामत है उपरवाले की ,
उसके रहमोकरम पर उसकी इबादत करो ....
तुम समजते रहे की हम तुमसे बेपनाह मोहब्बत करते है ,
ये तुम्हारी खुशफहमी थी जिसे हम
ग़लतफ़हमी करार दे न सके ......
तुम्हारी आवाज में वो पाकीजगी थी
की हमें उपरवाले की तस्वीर दीखाई देती थी ,
कैसे कहें हम इस आँख से कभी
इस दुनिया का भी दीदार न कर सके है ...!!!!
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 15.12.16 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2557 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद