10 दिसंबर 2016

वर्तमान

वक्त के इस छोर पर मैं खड़ी थी  ,
वक्त उस छोर पर खड़ा था  ...
मैं मुस्कुराई तो वक्त मुस्कुराया  ,
मैंने हाथ हिलाया तो उसने भी हाथ हिलाया  ,
लगा ऐसे जैसे आयने के सामने खड़ी  हूँ  ...
खुद को निहारती हुई  ,
पर ये वक्त का आयना है शायद  ,
कभी मुझे पीछे सैर कराने  ले चलता
और फिर वहां पर छोड़ता जहाँ खड़ी  थी  ,
हर समय एक महसूसियत के साथ एक चुभन होती  ,
उस वक्त में कितनी खुश थी ???!!!!
 पर एक दिन मैंने पलटकर देखा तो लगा
मैं पीछे रह गयी और दुनिया कितनी बदल गयी  ,
आयने के झांसे को तोड़ कर मैं
मुस्कुराते हुए चल दी  ,
जहाँ  वर्तमान खड़ा था बाहें फैलाये  ...!!!

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