माँ बोली : सब कुछ तो जानती हूँ मैं की ये गलत हो रहा है पर मेरी सुनता कौन है ??मेरी इस होनहार बेटीके लिए मुझे बहुत चिंता है . पर अब बेटी फैसला तुम्हे लेना है ज़ब तक तू हमारा मुंह ताकेगी तब तक यहाँ से तुम्हे कोई मदद नहीं मिलेगी . मैं तो इतना जानू की तुम्हे तुम्हारी मदद खुद करनी है . तुम्हारी शादीके लड्डू खाने के बाद लोगो को तुम्हारी जिंदगीमे कोई दिलचस्पी नहीं होगी . कुछ अच्छा हुआ तो ठीक है और नहीं अच्छा हुआ तो जबरन आकर हमारे घाव कुरेदकर अफ़सोस जताने चल पड़ती है दुनिया .
आज और अभी तू फैसला कर . इधर कुआँ है और उधर खाई . तुम्हे या तो घर मिल सकता है या तुम्हारी मंज़िल। अगर घर चुनती हो तो तुम्हे तुम्हारी मंज़िल को भूलना पड़ेगा और ये गलत होगा . तुम्हारे लिए और हर बेटी के लिए … और अगर तुम मंज़िल चुनती हो तो मुझे कहना होगा की हर इंसान का जो सपना हो सकता है ऐसे देश की धरती पर तुम जो पढ़ने जाओगी वो हर बच्चे के लिए मुमकिन नहीं . सिर्फ और सिर्फ अपनी होशियारी के बलबूते पर तुमने वजीफा पाया है . तुम्हे हमारे पर निर्भर होने की कोई आवश्यकता भी नहीं है और सबसे ज्यादा तुम वो शिक्षा पाना चाहती हो . मैं कहूँगी हम सबको भूल जा और जा बेटा तुम्हारी नयी मंज़िल तुम्हारी राह देख रही है । तू हमारी चिंता मत कर . हमारी दुआएँ तुम्हारे साथ ही है और रहेगी .
दीदी : पर ये छोटी का भविष्य ???
माँ : अगर तू सफल हुई तो उसके भविष्य पर कोई चिंता नहीं पर हर लड़की अपनी किस्मत लेकर ही आती है . बेटी तेरी सफलता यहाँ हजारों लड़कियों के जीवनमे उम्मीद के दिए जलायेगी . इस लिए तू कुछ मत सोच बस जा . और बुआ जी को दिल्ही के बस अड्डे पर छोड़ने के बहाने तू भी निकल जा क़ोइ सामान मत लेना . बुआ सारा इंतज़ाम कर देगी …
बुआ और मेरे लिए माँ का ये रूप नया था . दूसरे दिन सुबह बुआ तैयार हुई और उन्होंने तब जाने को बोला जब पापा उन्हें छोड़ने नहीं जा सकते थे और दीदी के कॉलेज का वक्त था . इस लिए दादी ने दीदी से बस अड्डे जाने को बोला . हम अपने भीतरी एहसास को दबाकर सिर्फ बुआ को हाथ हिलाकर बिदाई दे रहे थे . आंसू को रोक लिया . और दीदी को जाते हुए देख रहे थे .......
शाम को दीदी घर नहीं लौटी तो शुरू हुआ तूफान। ।
आज और अभी तू फैसला कर . इधर कुआँ है और उधर खाई . तुम्हे या तो घर मिल सकता है या तुम्हारी मंज़िल। अगर घर चुनती हो तो तुम्हे तुम्हारी मंज़िल को भूलना पड़ेगा और ये गलत होगा . तुम्हारे लिए और हर बेटी के लिए … और अगर तुम मंज़िल चुनती हो तो मुझे कहना होगा की हर इंसान का जो सपना हो सकता है ऐसे देश की धरती पर तुम जो पढ़ने जाओगी वो हर बच्चे के लिए मुमकिन नहीं . सिर्फ और सिर्फ अपनी होशियारी के बलबूते पर तुमने वजीफा पाया है . तुम्हे हमारे पर निर्भर होने की कोई आवश्यकता भी नहीं है और सबसे ज्यादा तुम वो शिक्षा पाना चाहती हो . मैं कहूँगी हम सबको भूल जा और जा बेटा तुम्हारी नयी मंज़िल तुम्हारी राह देख रही है । तू हमारी चिंता मत कर . हमारी दुआएँ तुम्हारे साथ ही है और रहेगी .
दीदी : पर ये छोटी का भविष्य ???
माँ : अगर तू सफल हुई तो उसके भविष्य पर कोई चिंता नहीं पर हर लड़की अपनी किस्मत लेकर ही आती है . बेटी तेरी सफलता यहाँ हजारों लड़कियों के जीवनमे उम्मीद के दिए जलायेगी . इस लिए तू कुछ मत सोच बस जा . और बुआ जी को दिल्ही के बस अड्डे पर छोड़ने के बहाने तू भी निकल जा क़ोइ सामान मत लेना . बुआ सारा इंतज़ाम कर देगी …
बुआ और मेरे लिए माँ का ये रूप नया था . दूसरे दिन सुबह बुआ तैयार हुई और उन्होंने तब जाने को बोला जब पापा उन्हें छोड़ने नहीं जा सकते थे और दीदी के कॉलेज का वक्त था . इस लिए दादी ने दीदी से बस अड्डे जाने को बोला . हम अपने भीतरी एहसास को दबाकर सिर्फ बुआ को हाथ हिलाकर बिदाई दे रहे थे . आंसू को रोक लिया . और दीदी को जाते हुए देख रहे थे .......
शाम को दीदी घर नहीं लौटी तो शुरू हुआ तूफान। ।
सच आज भी आसान नहीं है डगर पनघट की..
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