पर माँने तो दुनिया देखी है इसी लिए वो खिलाफत करने का साहस उठा नहीं पायी और फोन रख दिया . पर हाँ मेरा काम डॉक्टरने आसान कर दिया और मुझे इस दुनिया में आनेका विज़ा दिलवा ही दिया . मेरा जन्म होते ही माँ मुझे लिपट कर खूब रोई . मुझे बाहर लाया गया और मेरे परिवारसे मेरी मुलाकात हुई . नाना नानी आये थे ,दादी तो घर पर ही थी . मेरे पापाने मुझे गोदीमें उठाया . उनके खुरदरे हाथमें मेरे लिए प्यार तो था पर मेरे अस्तित्व को लेकर ढेर सारी चिंता भी मैंने महसूस की . दुनियामे आकर शायद पहली बार मैंने जाना की पप्पा भी प्यार तो करते है पर ठोस जमीं पर उनकी जिम्मेदारियाँ उन्हें प्यार जताने का मौका नहीं देती .
मेरी दो साल बड़ी दीदी के साथ मैं भी बड़ी होने लगी .
मेरी दादी मुझसे पहले तो दूर रहती थी . पर रोज मैं बगीचे से उनके लिए पूजा के फूल लेकर आती थी ,उनके साथै पूजा करती थी ,उनके ऐनक ढूंढकर देती थी . और उनके पास बैठकर उनकी बातें भी सुनती थी . उनका गुस्सा मेरे लिए प्यार में तब्दील होने लगा था . वो मुझे खुलकर प्यार तो नहीं जता पाती थी पर वो मेरे बिना रह भी नहीं पाती थी ,वो मुझे ढूंढती थी।
मैं जब चौथी कक्षामे आई तो मेरी पाठशाला में संगीत स्पर्धामे मैंने हिस्सा लिया . मेरी दादी के साथ बैठकर गए भजन में से मेरा एक प्रिय भजन " मेरे तो गिरिधर गोपाल " मैंने जब गाया तो सब छात्रों और शिक्षको को बहुत पसंद आया . मुझे पहला इनाम मिला . मैं घर गई तो दादी बाहर गयी थी . मैंने किसीसे कुछ भी नहीं किया पर मैं दरवाजे पर बैठकर दादी की राह देख रही थी . दादी उस शाम बहुत देर से घर आई . पापा भी आ चुके थे . मैंने कुछ भी नहीं खाया ,माँ मनाती रही . और दादी की राह देखते देखते मैं वहां पर ही सो गयी ज़ब दादी आई तब मुझे माँ ने उठाया खाना खाने के लिए . और दादी को बताया की किस तरह मैं बेसब्री से उनकी राह देख रही थी !!!
मैं भागकर कमरे में गयी और बस्ते में से मेरी ट्रॉफी निकालकर सीधी दादी के पास गयी और उन्हें बताया : दादी ,ये ट्रॉफी आपके लिए है . आपका वो भजन गाकर आज मुझे पहला इनाम मिला …
सच कहूँ तो दादीने पहली बार मुझे बहुत ही प्यारसे गले लगाया !!!!!!और वो बहुत खुश हो गयी . घरमे सब खुश हुए खास करके पिताजी …
आपको नहीं लगता की ये प्यारकी जादू वाली जप्पी पाने के लिए मुझे चार साल इंतज़ार करना पड़ा । पर क्यों ??? मैं लड़की थी इस लिए ???????
मेरी दो साल बड़ी दीदी के साथ मैं भी बड़ी होने लगी .
मेरी दादी मुझसे पहले तो दूर रहती थी . पर रोज मैं बगीचे से उनके लिए पूजा के फूल लेकर आती थी ,उनके साथै पूजा करती थी ,उनके ऐनक ढूंढकर देती थी . और उनके पास बैठकर उनकी बातें भी सुनती थी . उनका गुस्सा मेरे लिए प्यार में तब्दील होने लगा था . वो मुझे खुलकर प्यार तो नहीं जता पाती थी पर वो मेरे बिना रह भी नहीं पाती थी ,वो मुझे ढूंढती थी।
मैं जब चौथी कक्षामे आई तो मेरी पाठशाला में संगीत स्पर्धामे मैंने हिस्सा लिया . मेरी दादी के साथ बैठकर गए भजन में से मेरा एक प्रिय भजन " मेरे तो गिरिधर गोपाल " मैंने जब गाया तो सब छात्रों और शिक्षको को बहुत पसंद आया . मुझे पहला इनाम मिला . मैं घर गई तो दादी बाहर गयी थी . मैंने किसीसे कुछ भी नहीं किया पर मैं दरवाजे पर बैठकर दादी की राह देख रही थी . दादी उस शाम बहुत देर से घर आई . पापा भी आ चुके थे . मैंने कुछ भी नहीं खाया ,माँ मनाती रही . और दादी की राह देखते देखते मैं वहां पर ही सो गयी ज़ब दादी आई तब मुझे माँ ने उठाया खाना खाने के लिए . और दादी को बताया की किस तरह मैं बेसब्री से उनकी राह देख रही थी !!!
मैं भागकर कमरे में गयी और बस्ते में से मेरी ट्रॉफी निकालकर सीधी दादी के पास गयी और उन्हें बताया : दादी ,ये ट्रॉफी आपके लिए है . आपका वो भजन गाकर आज मुझे पहला इनाम मिला …
सच कहूँ तो दादीने पहली बार मुझे बहुत ही प्यारसे गले लगाया !!!!!!और वो बहुत खुश हो गयी . घरमे सब खुश हुए खास करके पिताजी …
आपको नहीं लगता की ये प्यारकी जादू वाली जप्पी पाने के लिए मुझे चार साल इंतज़ार करना पड़ा । पर क्यों ??? मैं लड़की थी इस लिए ???????
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