11 सितंबर 2015

वो लम्हे

कभी कभी ख़ामोशी का लिबास पहनकर
तैरते है नजरों के सागरमें अफ़साने गुजरे लम्होंके ,
नजरोंसे ही लिखे गए थे वो उसके एहसासमें शामिल ,
जो सामने है आज वो तो पढ़ नहीं पाता है उसे आज  …
कुछ अफ़साने लिख जाती है जिंदगी चुपके से ,
वक्तके सफे पर दिलकी वो धड़कन ,
आज गुमशुदा है वो लम्हे यादोके संदूकमें से ,
क्योंकि वो धड़कन जिस्मको छोड़ गयी तो लौटी ही नहीं  

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