29 अक्तूबर 2014

न तुम हो न हम है …

हथेली पर से फूंकसे उडी गर्द सी ,
वो यादें बह चली हवा के साथ ,
हमें लगा वो राख थी अरमानोंकी ,
लेकिन रातके साये में जुगनू सी चमक लिए थी  ....
कागज़से उठते हुए शब्द शबनमसे उड़ जाते है  ,
तुम्हारी फुरकत की आग की जलन से  …
वो बिखरे हुए लम्हात ,उड़ती हुई यादें  ,
नीमकी टहनी पर जुले पर गाती हुई  ,
शामके सन्नाटे में गूंजती हंसी तुम्हारी ,
सब तरोताज़ा है वहां पर  …
बस वहां न तुम हो न हम है  …

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