दिलसे उठी टीस स्याही बनकर
कलमसे गुजर जाती है ,
वो सुफेद सफे के लिबास पर
नज़्म बनकर बीछ जाती है …
=============================
क्यों ऐसा होता है ?
एक नज़्मको दर्द की स्याही से लिपटना होता है ,
अंगारो पर चलता है दिल फफोले दिल पर लिए ,
बहते अश्कोंमे इश्क़ की इबादत नज़र आती है …
कोई कहे ग़ज़ल या नज़्म हमें उससे ताल्लुक कहाँ ?
हमें तो उसमे रब से शिकायत नज़र आती है ....
==================================
इश्क़ में कोई जाना या अनजाना कहाँ होता है ,
सिर्फ उसमे तो दिल की गवाही समज आती है …
==================================
सरेराह उसका चले जाना छोड़ हमें तनहा यूँ ,
गवारा न हुआ दिल को फिर भी ,
हमें तो दो राहों से भले ये जिंदगी ,
मंज़िले तो एक ही नज़र आती है …।
कलमसे गुजर जाती है ,
वो सुफेद सफे के लिबास पर
नज़्म बनकर बीछ जाती है …
=============================
क्यों ऐसा होता है ?
एक नज़्मको दर्द की स्याही से लिपटना होता है ,
अंगारो पर चलता है दिल फफोले दिल पर लिए ,
बहते अश्कोंमे इश्क़ की इबादत नज़र आती है …
कोई कहे ग़ज़ल या नज़्म हमें उससे ताल्लुक कहाँ ?
हमें तो उसमे रब से शिकायत नज़र आती है ....
==================================
इश्क़ में कोई जाना या अनजाना कहाँ होता है ,
सिर्फ उसमे तो दिल की गवाही समज आती है …
==================================
सरेराह उसका चले जाना छोड़ हमें तनहा यूँ ,
गवारा न हुआ दिल को फिर भी ,
हमें तो दो राहों से भले ये जिंदगी ,
मंज़िले तो एक ही नज़र आती है …।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें