रात कुछ गिरने की आहट हुई ,
मोमबत्ती की रौशनी कर देखा
एक लम्हा गिरा था ,
उठाकर देखा तो
मेरा गुजरा हुआ वक्त था ,
मुस्कुरा रहा था ,
छटपटा रहा था ,
आखें नम थी ,
होठों पर मुस्कराहट … फिर भी ,
मैं इस सब से दूर खड़ी ,
वक्त की नदीके दूसरे किनारे पर …
वक्त हर लम्हे से अलग खड़ा ,
अपनी रफ़्तार में दौड़ता ,रुकता ,
सुस्ताता दिखा … पर वो रफ़्तार मेरी थी …
क्या वक्त मेरी परछाई था ????
या फिर मैं गुजरते वक्त का अक्स ????
मोमबत्ती की रौशनी कर देखा
एक लम्हा गिरा था ,
उठाकर देखा तो
मेरा गुजरा हुआ वक्त था ,
मुस्कुरा रहा था ,
छटपटा रहा था ,
आखें नम थी ,
होठों पर मुस्कराहट … फिर भी ,
मैं इस सब से दूर खड़ी ,
वक्त की नदीके दूसरे किनारे पर …
वक्त हर लम्हे से अलग खड़ा ,
अपनी रफ़्तार में दौड़ता ,रुकता ,
सुस्ताता दिखा … पर वो रफ़्तार मेरी थी …
क्या वक्त मेरी परछाई था ????
या फिर मैं गुजरते वक्त का अक्स ????
आपकी इस प्रस्तुति को आज की बुलेटिन लाल बहादुर शास्त्री जी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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