खरोंचते है उन जख्मोंको नाखूनोंसे अपने ,
उम्मीद लगाये की चलो इससे फिर खून रिसेगा …
अभी तो जख्म भरे थे ,
अभी तो हलकीथी मुस्कान आकर गयी थी ,
फिर रास न आई और इंसानी दिमागमे
शैतानियत एक बार लहू बहाने बेताब हुई …
न कोई सुकून है इस इनाम अकरामो की जूठी रिवायतसे ,
न कोई खफगी ही है हमारी बदनामियोंसे ……
ए इंसान तुझे तो लगा हर इंसान निकम्मा तेरी नज़रसे ,
बस सिर्फ एक बार तो सोच तू कितनो के काम आया ,
बदनाम करता रहा है तू जिस जिस को गली गली ,
तू इससे क्या नाम कर पाया है ???
तेरे दीदार से भी लोग बदल देंगे रास्ता अपना ,
तुझसे नजर कतराते हुए निकल जायेंगे ,
येही शायद सिला होगा तेरे करम नवाजिश होगी ,
कहते है देता है जो दूसरोंको वही तू सबसे पायेगा …….
उम्मीद लगाये की चलो इससे फिर खून रिसेगा …
अभी तो जख्म भरे थे ,
अभी तो हलकीथी मुस्कान आकर गयी थी ,
फिर रास न आई और इंसानी दिमागमे
शैतानियत एक बार लहू बहाने बेताब हुई …
न कोई सुकून है इस इनाम अकरामो की जूठी रिवायतसे ,
न कोई खफगी ही है हमारी बदनामियोंसे ……
ए इंसान तुझे तो लगा हर इंसान निकम्मा तेरी नज़रसे ,
बस सिर्फ एक बार तो सोच तू कितनो के काम आया ,
बदनाम करता रहा है तू जिस जिस को गली गली ,
तू इससे क्या नाम कर पाया है ???
तेरे दीदार से भी लोग बदल देंगे रास्ता अपना ,
तुझसे नजर कतराते हुए निकल जायेंगे ,
येही शायद सिला होगा तेरे करम नवाजिश होगी ,
कहते है देता है जो दूसरोंको वही तू सबसे पायेगा …….
आपकी यह रचना कल मंगलवार (12-08-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
जवाब देंहटाएंखुबसूरत प्रस्तुती......
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंकहते है देता है जो दूसरोंको वही तू सबसे पायेगा ……
जवाब देंहटाएंआमीन ।