कभी देखा है बारिशों को ???
बुन्दोकी लड़ी है तो कभी लगी छड़ी है …
कभी तिरछी धार चलती है ,
कभी उलटे मुंह नीचे गिरती है …
कभी खामोश सी ….
कब आई कब गई ???
कुछ नहीं पता …
बस इधर उधर गीली मिट्टी के निशानभर …
उसका आना तय …
उसका रुकना तय …
उसके जाने का वक्त भी तय …
फिर भी हर मौसम लिखे जाती है ….
नयी नयी दास्ताँ ….
नयी नयी जुबाँ ….
नयी नयी कहानियाँ …
नयी नयी जवानियाँ ….
ये बारिशें …
ये ख्वाहिशें …
बुन्दोकी लड़ी है तो कभी लगी छड़ी है …
कभी तिरछी धार चलती है ,
कभी उलटे मुंह नीचे गिरती है …
कभी खामोश सी ….
कब आई कब गई ???
कुछ नहीं पता …
बस इधर उधर गीली मिट्टी के निशानभर …
उसका आना तय …
उसका रुकना तय …
उसके जाने का वक्त भी तय …
फिर भी हर मौसम लिखे जाती है ….
नयी नयी दास्ताँ ….
नयी नयी जुबाँ ….
नयी नयी कहानियाँ …
नयी नयी जवानियाँ ….
ये बारिशें …
ये ख्वाहिशें …
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन सही मायने में 'लोकमान्य' थे बाल गंगाधर तिलक - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंवाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें और टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |http://saxenamadanmohan.blogspot.in/
http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/
khubsurat rahi ye barishe....rochak rachna....
जवाब देंहटाएंकभी देखा है बारिश को???
जवाब देंहटाएंन....नहीं देखा....
महसूस किया है...छुआ है.....पिया है.....जिया है मैंने बारिश को....
अनु
barish aur khwaish ka adbhut mel .:)
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