दाग दामन पर लगा था ,
कुछ चिंगारी सा उस पर पड़ा था ,
एक काला सा छेद बन पड़ा था ,
घूँघट निकाले तो आंखों के सामने आया था ...
काली सी लकीर थी वहां पर मेरी आंखों का काजल जैसे ,
एक संधान था दुनिया के साथ घूँघटमें से ,
बस वहीं से तोसे नैना लागे
दिल में कसक उठी
जैसे शिशिरमें कोयलकी कूक उठी ,
पर हाय जबान खामोश ही रह गई ........
एक जोर का हवा का झोंका दुपट्टे को उड़ा ले गया ,
बेनकाब हम आपके सामने खडे थे नज़र झुकाए ,
ये आपकी खता थी जिसे आपने प्यार का इजहार समज लिया ,
बस खता हवाओं की थी और दिल सज़ा पा गया .....
आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [22.07.2013]
जवाब देंहटाएंचर्चामंच 1314 पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें
सादर
सरिता भाटिया
बहुत ही अच्छी....वाह!
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