संगेमरमर का टुकड़ा है ,
जमीं पर नर्मो नाजुक सा आता है ,
वो पत्थर नहीं मोमके सान्चोमें तराशा जाता है ,
दोस्त ! गौरसे देखो ये हमारी जिंदगी कहा जाता है ....
हम तराशते है हमारी जिंदगीको ,
कोई मूरत होती है खुबसूरत सी ,
कोई रंगोंके बिखरे ढेर सी ,
कोई खिले गुलाबसी महक जाती है ,
कोई सारी कायनात को रुलाती है ,
कोई खुली गटरसी बदबूदार बन जाती है ,
कोई आधी अधूरी तराशी हुई प्रतिमा ही रह जाती है ,
छिनी हथोडी भी मिलती है हर किसीके पास ,
समज नहीं आया आज तक
क्यों ये दुनिया हर हर्फ़ पर किस्मतको कोसे जाती है ????
तस्वीर बनाते है अपनी अपने जहनमें
उसे तराशकर रख देते है ....
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