धरती की धुल के जर्रे तेज हवाओंके पंख पर सवार
मेरे घरौंदेमें नटखट शरारत करने आ गए थे ...
मैं उन्हें बुहारूं जैसे पढ़ रही थी जर्रे जर्रे पर लिखे संदेसे को
सावनके मेघमल्हार राग की खुशबू सी आ रही थी ....
टीनकी छत पर दस्तक दी तब वो माशूकाने बादलकी
टन टना टन सी बरबस बरस रही मेरा नाम पुकारते हुए ....
कृष्णप्रेम दीवानी एक गोपी सी
उस बांसुरी की मधुर धूनको सुन मैं भी बाहर दौड़ चली .....
बदमास कारे बदरीमें सावन सैयां फिर छुप गए खामोश बन .....
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