मेरी हथेलीमें कोई मेघधनुष लिख गया ,
प्यारेसे पैगाममें कोई एक खुशबु छोड़ गया ...
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बादलों पर लिखे मेघदूतको पढनेकी
कोशिश करते करते शाम ढल जाती है ...
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एक एक शब्द गिर रहे थे बादलके प्रेमपत्रसे बूंद बन बन ,
मैंने हथेली धरकर उसमे एक तालाब सजा लिया ...
अब इस मेघदूतके कुछ पन्नो से मैंने भी
एक गिलास भर कर जैसे पैगाम प्रियतमका पी लिया ...
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वो हरे हरे पत्ते की बांधनी पहनकर इठलाकर चली है धरती ,
लगता है हर साल कि सोलहवा साल अभी लगा है शायद ...
प्यारेसे पैगाममें कोई एक खुशबु छोड़ गया ...
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बादलों पर लिखे मेघदूतको पढनेकी
कोशिश करते करते शाम ढल जाती है ...
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एक एक शब्द गिर रहे थे बादलके प्रेमपत्रसे बूंद बन बन ,
मैंने हथेली धरकर उसमे एक तालाब सजा लिया ...
अब इस मेघदूतके कुछ पन्नो से मैंने भी
एक गिलास भर कर जैसे पैगाम प्रियतमका पी लिया ...
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वो हरे हरे पत्ते की बांधनी पहनकर इठलाकर चली है धरती ,
लगता है हर साल कि सोलहवा साल अभी लगा है शायद ...
सुन्दर रचना !!
जवाब देंहटाएंमन के मन के भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....
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