आज भी मेरे कम्प्यूटरमें जगह खाली ही खाली रहती है ,
क्यों की आज भी मुझे कलम कागज़की आदत सी है ...
अभी भी मिलते है कागज़ के टुकड़े मेरे कमरे की फर्श पर ,
कल रात अधूरी लिखकर फाड़ी थी जो नज़्म बिखरी पड़ी है ....
बस अहेसासों को नए नए चोले पहनाने का शौक है शायद ,
लिखकर फाड़ देने के खेलमे मुझमे बचपन जिन्दा आज भी है ,
अधूरी अधूरी सी मूरतें बंद है दिल के बंद कमरे में मेरे आज भी ,
उनमे से उभर कर आती है पूरी तस्वीरे जहनमें कैद आज भी है ....
कहते है हर पलकों जीते है हम मर मर के तेरी यादोंमे ,
फिर भी दिलकी हर धड़कनमें जिन्दा वो तेरी सदा आज भी है .....
क्यों की आज भी मुझे कलम कागज़की आदत सी है ...
अभी भी मिलते है कागज़ के टुकड़े मेरे कमरे की फर्श पर ,
कल रात अधूरी लिखकर फाड़ी थी जो नज़्म बिखरी पड़ी है ....
बस अहेसासों को नए नए चोले पहनाने का शौक है शायद ,
लिखकर फाड़ देने के खेलमे मुझमे बचपन जिन्दा आज भी है ,
अधूरी अधूरी सी मूरतें बंद है दिल के बंद कमरे में मेरे आज भी ,
उनमे से उभर कर आती है पूरी तस्वीरे जहनमें कैद आज भी है ....
कहते है हर पलकों जीते है हम मर मर के तेरी यादोंमे ,
फिर भी दिलकी हर धड़कनमें जिन्दा वो तेरी सदा आज भी है .....
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (19-05-2013) के चर्चा मंच 1249 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
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