20 नवंबर 2012

राज़ है ये

मैंने देखी प्यारकी एक मूरत ...
पाषाणसे बनी हुई थी ,
संगेमरमरमें तराशी हुई ,
श्वेत , रेशमी , आयनेसी ....
उसको छुआ तो लगा धड़कन शेष है अभी ,
बस एक अश्ककी बूंद अनायास निकली
मेरी आँखोंसे ....
और दर्दकी लकीर वो मूरतकी आँखोंमें थी .....
प्यारको कभी कोई आकारकी मोहताजी कहाँ ???
बस वो तो बिखरता रहा है हवाओमें ,
ठंडी ठंडी नर्म बर्फकी ज़र्राओमें ,
रेगिस्तानकी तपिशसे सुलगते रेतके कणोंमें ,
वो सब आज एक जगह पाया ,
एय प्यारकी मूरत तुझमे ,
और होठों पर मुस्कान क्यों थी ???
राज़ है ये तेरे लिए ...
राज़ है  ये मेरे लिए .......

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