रात एक ग़ज़ल सिसक रही थी
चांदके सिरहाने बैठकर
क्यों दर्दकी स्याही टपकती रहती है ,
जब शेरका लिबास पहनकर लब्ज़ सजते है सफे पर ??
क्या कोई ग़ज़ल मुस्कराहटकी हक़दार नहीं ?
क्यों शायरी खुलकर हंस नहीं सकती कभी ?
तब चाँदने मुक्तलिफ़सी एक बात कह दी
अपनी डायरीके एक पन्नेसे जहाँ सुखा एक गुलाब रखा था ....
बेपनाह मोहब्बतका एक आला श्रृंगार है ये ग़ज़ल ,
जवां होती है इश्कके आगोशमें रहकर
फिर भी दर्दके दामनमें लिपटे बगैर अधूरीसी है ये ग़ज़ल ....
बेखबरसे पल गुजर जाते है विसाले यार होता है जब
जब महबूबकी आँखोंमें हम डूब जाते है ....
लेकिन जब फासले हो जाते है कभी उनके दरम्यां हिजरके
नाकाबिले बर्दाश्त ये दर्द सारे कलमसे ग़ज़ल बनकर टपक जाते है .....
ये दास्ताने मोहब्बतका वो रुख है जो जुदाई में नज़र आता है
जो इश्कको और गहरा बनाकर चल देता है ....
ग़ज़ल खामोश ....चाँद खामोश ....
रात खामोश .....हिजरमें लिखे अल्फाज़ चमक रहे सितारोंमें
एक अनलिखी ग़ज़ल बनकर ......
चांदके सिरहाने बैठकर
क्यों दर्दकी स्याही टपकती रहती है ,
जब शेरका लिबास पहनकर लब्ज़ सजते है सफे पर ??
क्या कोई ग़ज़ल मुस्कराहटकी हक़दार नहीं ?
क्यों शायरी खुलकर हंस नहीं सकती कभी ?
तब चाँदने मुक्तलिफ़सी एक बात कह दी
अपनी डायरीके एक पन्नेसे जहाँ सुखा एक गुलाब रखा था ....
बेपनाह मोहब्बतका एक आला श्रृंगार है ये ग़ज़ल ,
जवां होती है इश्कके आगोशमें रहकर
फिर भी दर्दके दामनमें लिपटे बगैर अधूरीसी है ये ग़ज़ल ....
बेखबरसे पल गुजर जाते है विसाले यार होता है जब
जब महबूबकी आँखोंमें हम डूब जाते है ....
लेकिन जब फासले हो जाते है कभी उनके दरम्यां हिजरके
नाकाबिले बर्दाश्त ये दर्द सारे कलमसे ग़ज़ल बनकर टपक जाते है .....
ये दास्ताने मोहब्बतका वो रुख है जो जुदाई में नज़र आता है
जो इश्कको और गहरा बनाकर चल देता है ....
ग़ज़ल खामोश ....चाँद खामोश ....
रात खामोश .....हिजरमें लिखे अल्फाज़ चमक रहे सितारोंमें
एक अनलिखी ग़ज़ल बनकर ......
अपनी डायरी के
जवाब देंहटाएंएक पन्ने से
जहाँ एक सूखा
गुलाब रखा था ....
बेपनाह मोहब्बत का
एक आला श्रृंगार है
ये ग़ज़ल ।
प्रीति जी,बहुत बढिया लिखा है बधाई स्वीकारें।