4 अप्रैल 2012

जहाँ छोड़ गए थे तुम ....

तफतीश की थी तुम्हारे नामकी हमारे गुनहगारोंमें
यकीं न हुआ जब ये नाम आया मेरे तलबगारमें !!!!....
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सितम करना ये तो हुस्नका मजहब है ,
उसे हँसते हुए सहना इश्ककी बंदगीमें शुमार है ...
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चराग जलते है जब रातोंमें मज़ार पर
परवाना बनकर इश्क चला आता है फ़ना होने.....
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जिंदगीके कारोबारमें उसने मुनाफा तो बहुत कमाया ,
पर जो गंवाया वो उसका सच्चा और पहला प्यार था .....
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जिसे ढूँढनेके लिए निगाहें रातको भी बंद नहीं होती है अब ,
वो तो खड़े है अभी उसी मोड़ पर जहाँ छोड़ गए थे तुम ....

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