10 मार्च 2012

सच कहती हूँ ...

ये मनके पंख भी कितने सुन्दर है ??
छूते है कभी समुन्दरकी गहराई को ,
और बिन भीगे उस खारे पानी से
आसमानके उस पार भी संधान करे !!!!!
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तन्हाईमें साथ चलकर उनका ख्याल आया ,
उन्हें सोचकर ये बावला दिल फिर शरमाया !!!
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मुझे चाहिए एक खुला आसमान खुदमे एक बार ,
पर तुम्हारे खयालोंने एक जर्रा भी खाली नहीं छोड़ा !!!
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सबसे सुन्दर लम्हे तो हमने गुजार दिए तेरे इंतज़ारमें ,
कारवांमें भी तुम मेरे साथ साथ पकड़कर हाथ चले थे !!!!!
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कारण तो नहीं यूँ तो तेरे इंतज़ारका ,
पर उन सुनहरे पलोंको जीना अच्छा लगता है !!!!
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सच कहती हूँ ...

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